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09:04, 30 जून 2010 <poem>आकाश में
गिद्धों की तरह तिर रहे हैं
हवाई जहाज-हैलीकॉप्टर
आग में ओटी हुई बाटी
उथलना भूल जाती हैं
चूल्हे के पास बैठी हुई औरतें
धमाके......धमाके.......धमाके
अब बाटी उथलने से क्या होगा ?
अब तो
सब कुछ आग में ही है !
'''अनुवाद : मोहन आलोक'''
</poem>
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