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गर छाप दे--ग़ज़ल / मनोज श्रीवास्तव
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10:24, 2 जुलाई 2010
अब कुफ्र करना छोड़ दो हर दश्त के अम्बार में.
पिंजरे में कैद शेर से तूं आज क्यों
डराने
डरने
लगा
वो आदमी गांधी नहीं जो चींखता आजार में.
(रचना-तिथि: ०२-०९-१९९५)
Dr. Manoj Srivastav
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