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11:14, 3 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल
|संग्रह=ललमुनियॉं की दुनिया
}}
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<poem>
देखना भी एक तरह का
हस्तक्षेप है
जब धूप में हम निकल आते हैं
तो कुछ न कुछ
बदलाव आ जाता है सूर्य में
हमारे चिल्लाने से
हिमालय की बर्फ के कुछ अणु ही सही
पिघलते हैं
जब हम पार करते हैं छोटी-सी नदी
तो कुछ न कुछ
जरूर पहुँचता है समुद्र तक
हो सकता है
कभी एक छोटा-सा विचार उठे
और
निर्मूल कर दे दुनिया का सारा दुख
कभी-कभी धरती भी रुककर
कान दे कर सुनती है कुछ लोगों की पदचाप
और
फर्क आ जाता है रात और दिन की
छोटाई-बड़ाई में ।
</poem>