833 bytes added,
09:34, 5 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
''' दबे पाँव आई हो '''
दबे पाँव आई हो
धड़कन को कैद कर
आहों के राग से
कोई अनसुना गीत गाई हो
संवेदना ज़ज्ब किए
श्वास को नब्ज़ दिए
पेशी-स्पंदन से
भावों के लगाम को थाम-थाम आई हो
रेतीली तरंगों पर
तूफानी फुंकारों से
काल के कदमों से
भौतिक स्पंदन पर
उम्र को लिख-लिख, आर-पार छाई हो.