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दबे पाँव आई हो / मनोज श्रीवास्तव

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दबे पाँव आई हो

दबे पाँव आई हो
धड़कन को कैद कर
आहों के राग से
कोई अनसुना गीत गाई हो

संवेदना ज़ज्ब किए
श्वास को नब्ज़ दिए
पेशी-स्पंदन से
भावों के लगाम को थाम-थाम आई हो

रेतीली तरंगों पर
तूफानी फुंकारों से
काल के कदमों से
भौतिक स्पंदन पर
उम्र को लिख-लिख, आर-पार छाई हो.