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आहत है स्वप्न का गगन / आनंद कुमार ‘गौरव’
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16:05, 29 जुलाई 2010
::बिन बरसे काला बादल
::::
युग हुए न लौटे घर हम
::::
हो गए छलावे मौसम
::::
नून छिड़कती जख़्मों पर
::::
सावनी सुरीली सरगम
::::
सोच हो गई मधुशाला
::::
चाहना रही गंगाजल
</poem>
अनिल जनविजय
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