Last modified on 29 जुलाई 2010, at 21:35

आहत है स्वप्न का गगन / आनंद कुमार ‘गौरव’

आहत है स्वप्न का गगन
चेहरा है बिखरा काजल
 
हृदय नेह का सागर है
दृष्टि मेघमय गागर है
जब से चैतन्य मन हुआ
पल-पल जैसे चाकर है
चित्र में प्रविष्ट हो गया
बिन बरसे काला बादल
 
युग हुए न लौटे घर हम
हो गए छलावे मौसम
नून छिड़कती जख़्मों पर
सावनी सुरीली सरगम
सोच हो गई मधुशाला
चाहना रही गंगाजल