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10:30, 5 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
सीधा है कि चालाक, दिखाई नहीं देता
इंसान खतरनाक दिखाई नहीं देता
आंखों पे जिन्हें नाज़ है उनको ये बता दो
पड़ जाती है जब ख़ाक, दिखाई नहीं देता
तन साफ़ तो मन साफ़, ये नुस्खा मिला जब से
कोई यहाँ नापाक दिखाई नहीं देता
बोला तो सुलग जाओगे उकसाओ न मुझको
मैं शक्ल से बेबाक दिखाई नहीं देता
हर ऐब, हर इक जुर्म, यहाँ तक कि गरीबी
ढक लेती है पोशाक दिखाई नहीं देता <poem/>