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उठेंगी चिलमनें फिर हम यहाँ देखेंगे किस-किस की / गौतम राजरिशी
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06:56, 28 सितम्बर 2010
अगर जाना ही है तुमको,चले जाओ मगर सुन लो
तुम्हीं से है दीये की रौशनी, रौनक भी मजलिस की
''{मासिक आजकल, जून 2010}''
</poem>
Gautam rajrishi
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