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मनस्थिति-2 / लोग ही चुनेंगे रंग

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कोई देखे तो हँसेगा
जैसे शून्य की कहानी
सुन मैं हँसा

बाहर घसियारों की मशीनें
चुनाव का शोर
मैदान में खेल
शोर आता दिमागी नसें कुतरता हुआ भीतर
शून्य की तकलीफ अपने वजूद पर खतरे की
मुझे सुनाई जैसे सुनाई खुद से हो

जाने कौन हँसा
मैं या शून्य.
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