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09:02, 29 अक्टूबर 2010 KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
जुल्म के सामने चुप रहल
ई त जियते-जियत बा मरल
साँच के साथ देवे बदे
खुद से अक्सर लड़े के पड़ल
पाँव में हमरा काँटा चुभल
दर्द उनका हिया में उठल
हमरे रोपल रहल जंग ई
हमरे कीमत भरे के पड़ल
भीखमंगा सड़क पर सुतल
जइसे बालू प मछरी पड़ल
जेके पत्थर में खोजत रहीं
ऊ त धड़कन में हमरा मिलल
अब त 'भावुक' हो तहरा बिना
दू कदम भी बा मुश्किल चलल
<poem>