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09:20, 29 अक्टूबर 2010 KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
हिया हमार तार-तार हो गइल
बेकार में ही आँख चार हो गइल
नजर नजर के आर-पार हो गइल
त तेज शायरी के धार हो गइल
मना कइल गइल जे काम, मत करऽ
उहे त काम बार-बार हो गइल
हिया हिया से ए तरे मिलल कि अब
उहे हमार घर-दुआर हो गइल
तहार साथ छूटते ई का भइल
धुँआ-धुँआ उठल, अन्हार हो गइल
ऊ बेवफा कहीं ना चैन पा सके
जे चैन लूट के फरार हो गइल
<poem>