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09:22, 29 अक्टूबर 2010 KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
घाव पाकी त फुटबे करी
दर्द छाती में उठबे करी
बिख भरल बात लगबे करी
शूल आँतर में चुभबे करी
खीस कब ले रखी आँत में
एक दिन ऊ ढकचबे करी
जब शनिचरा कपारे चढ़ी
यार, पारा त चढ़बे करी
दोस्ती जहँवाँ बाटे उहाँ
कुछ शिकायत त रहबे करी
राह कहिये से देखत बा जे
ऊ त रह-रह चिहुकबे करी
बाटे नादान 'भावुक' अभी
राह में गिरबे-उठबे करी
<poem>