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पुल / विनोद स्वामी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= विनोद स्वामी |संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>रात -भर गुजरती गुज़रती है दुनिया
इसके नीचे से
तीन सौ फिट लंबा
शाम होते ही
उस भीखमंगे की
चारपाई बन जाता है।है । अगर गालिब ग़ालिब इसे
सोए हुए देखता तो
अपना शेर शे'र बदल देता । सूर तोजो
देख पाता नहीं
मगर इस पर
जरूर ज़रूर कोईनई बात कहता।कहता । 
यही पुल
होता अगर
सबसे बड़ी
खाट कहता ।
कोई फक्कड़
इससे भी आगे कहता;
इस पुल पर
जीवन का
सबसे बडा
ठाट कहता।कहता ।
</poem>
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