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यही सबब है जो हल मसअला नही नहीं होताकि ज़ह्नो-दिल मे कोई मश्विरा नही नहीं होता ।
हम आईने के मुकाबिल तो रोज़ होते हैं
हमारा ख़ुद से मगर सामना नही नहीं होता ।
हवा जिधर की चले, रुख रुख़ उधर का कर लेनासमन्दरों मे में कोई रास्ता नही नहीं होता ।
बयान, पेशी, गवाही तो रोज़ होते है
मगर हयात तेरा फ़ैसला नही नहीं होता ।
वो जिसमें शाखें शाख़ें निकलती नहीं है शाखों हैं शाख़ों से उसी दरख़्त का साया घना नही नहीं होता ।
सब अपने-अपने लिए जी रहे है हैं ए ’बेख़ुद’यहाँ तो कोई किसी का सगा नही नहीं होता ।
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