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अजनबी ख़ौफ़ फ़िज़ाओं में बसा हो जैसे / अहमद कमाल 'परवाज़ी'
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01:11, 19 नवम्बर 2010
<Poem>
अजनबी ख़ौफ़ फ़िज़ाओं में बसा हो जैसे,
शहर का शहर ही
आसेबज़
दा
आसेबज़दा
हो जैसे,
रात के पिछले पहर आती हैं आवाज़ें-सी,
द्विजेन्द्र द्विज
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