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दस दोहे (71-80) / चंद्रसिंह बिरकाली
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08:09, 25 नवम्बर 2010
[[Category: दोहा]]
<poem>
सूंई धारां ओसरयो दूधां-वरण अकास ।
रात-दिवस लागै झड़ी सुरंगै सावण मास ।।71।।
बालकों की टोलियाँ मौहल्ले में खड़ी नाच रही हैं । बादली उनको झुक-झुक कर देख रही है और आनंदातिरेक में छलक पड़ती है ।
</poem>
आशिष पुरोहित
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