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शठ नायक / रसलीन

काय बचो मन तें बसी हौं जिय संग निकारइ जो कछु तेरे।
हाथ के माथे धरे कुच संभु के काय के सौंह को देत सबेरे।
नाभि के कुंड में सीरी के सौंह को मो मन हौं रसलीन जो तेरे।
बात की जो परतीति नहीं मुख को एक धरो अब जीभ में मेरे॥57॥