दोस्तो, मैं चाहता हूँ
तुम सच को जानो
और उसे बोलो !
मैदान छोड़ते
थके-मान्दे सम्राटों की तरह नहीं
कि ‘आटा कल पहुँच जाएगा’ !
बल्कि
लेनिन की तरह
कि कल रात तक
सब चौपट्ट हो जाएगा
यदि हम कुछ करें नहीं —
ठीक जैसे कि यह छोटा गीत –
‘‘भाइयो यह किस के बारे में है
मैं तुमसे साफ़-साफ़ कहूँगा
कि जिन मुश्क़िलात में हम आज फँसे हैं
उनसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है’’
दोस्तो,
इसे दृढ़ता से स्वीकारो
और स्थिति का सामना करो,
जब तक कि…।
(1953)
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल