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समीकरण भी / रमेश रंजक

रंगों का समीकरण भी
पँख बाँध कर कबन्ध में
आँखें दिखला रहे हमें

चलती है जहाँ नहीं आग की उधारी
यह ऐसा गाँव है
कटे-कटे खेत हैं जहाँ
गर्म हवा का पड़ाव है

टहनी भर छाँह ओढ़ कर
झूम रहे जो सुगन्ध में
आँखें दिखला रहे हमें

गोद लिए शब्दों की बाँह, बाँझ लेखनी
थाम कर अकड़ रही
एक हरे-भरे बाग़ की
तितलियाँ पकड़ रही

टंकित हो फूल रहे जो
सम्बन्धों के निबन्ध में
आँखें दिखला रहे हमें