यह हड्डियों के आर-पार बह रही है
इसमें टूट रहे हैं रोयें
इसमें रुदन के स्वर उभर रहे हैं
इसमें उड़ रही है शमशान की राख
इसमें फड़फड़ा रहे हैं प्राण
यह हड्डियों के आर-पार बह रही है
इसमें टूट रहे हैं रोयें
इसमें रुदन के स्वर उभर रहे हैं
इसमें उड़ रही है शमशान की राख
इसमें फड़फड़ा रहे हैं प्राण