(राग ईमन-तीन ताल)
अज अव्यय अखिलेश प्रभु नित्य अचिन्त्यस्वरूप।
परम-स्वतन्त्र हुए प्रकट चिन्मय रूप अनूप॥
व्रजमें लीला ललित कर, हुए द्वारकाधीश।
पार्थ-सखा सारथि बने भक्तञ्वश्य जगदीश॥
वरदहस्त हो कर रहे अक्षय अभय प्रदान।
शरणागत-वत्सल सहज सुहृद कृष्ण भगवान॥