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अपनी हथेलियों में / केदारनाथ अग्रवाल

अपनी हथेलियों में
अपने अस्तित्व के
चावल लिए,
चोंच मारती
चिड़ियों को चुगाता है;
दूसरों के लिए
जीने का
नाटक रचाता है।

संस्कार-बद्ध आदमी,
बस,
यहीं तक जाता है;
सम्पत्ति के
जठर सम्बंध
नहीं तोड़ पाता है,
सुख-भोग
नहीं छोड़
पाता है।

रचनाकाल: २४-०८-१९७८