आना होगा जब उसे
आना होगा जब उसे
रोक नहीं सकती
भूखी शेरनी – सी दहाड़ती नदी
उलझा नहीं सकते
जादुई और तिलिस्मी जंगल
झुका नहीं सकते
रसातल को छूती खाई
आकाश को ऊपर उठाते पहाड़
पथभ्रण्ट देवताओं के मायावी कूट
अकारण बुनी गई वर्जनाएँ
समुद्री मछुआरों की जाल-सी
दसों दिशाओं को घेरती प्रलयंकारी लपटें
अभिसार के रास्ते में
नतमस्तक खड़ा हो जाता है सृष्टि-संचालक
स्वयं पुष्पांजलि लिए
आना होगा जब-जब उसे
वह आएगा ही