(13)
राघौ गीध गोद करि लीन्हों |
नयन-सरोज सनेह-सलिल सुचि मनहु अरघजल दीन्हों ||
सुनहु लषन! खगपतिहि मिले बन मैं पितु-मरन न जान्यौ |
सहि न सक्यौ सो कठिन बिधाता, बड़ो पछु आजुहि भान्यौ ||
बहु बिधि राम कह्यो तनु राखन, परम धीर नहि डोल्यौ |
रोकि, प्रेम, अवलोकि बदन-बिधु, बचन मनोहर बोल्यौ ||
तुलसी प्रभु झूठे जीवन लगि समय न धोखो लैहौं |
जाको नाम मरत मुनिदुरलभ तुमहि कहाँ पुनि पैहौं ?||