अर्द्ध सरकारी कलेण्डर–सा
आज का हर आदमी
वक़्त की
दीवार पर लटका हुआ !
कील में
गर्दन फँसाकर
झूलते रहना,
जो सहा जाए
बिना नकचक किए
सहना,
चौखटे पर साफ़ दिख जाता
माह का हर सिलसिला
टें हुई
कुछ भी अगर खटका हुआ !
27 जनवरी 1974
अर्द्ध सरकारी कलेण्डर–सा
आज का हर आदमी
वक़्त की
दीवार पर लटका हुआ !
कील में
गर्दन फँसाकर
झूलते रहना,
जो सहा जाए
बिना नकचक किए
सहना,
चौखटे पर साफ़ दिख जाता
माह का हर सिलसिला
टें हुई
कुछ भी अगर खटका हुआ !
27 जनवरी 1974