झूल रहे अब तक आशा से
मेरे मन के झूले!
ललित मयंक कुमुद-अम्बर में,
कलित कुमुदिनी शशि के सर में;
आज मुदित मन-मन घर-घर में;
मेरे ही... घर भूले!
विकल विफल वंचित मृग-दृग-दल;
कम्पित उर ममताकुल, प्रतिपल;
शशि को कैसे छू ले!
झूल रहे अब तक आशा से
मेरे मन के झूले!
ललित मयंक कुमुद-अम्बर में,
कलित कुमुदिनी शशि के सर में;
आज मुदित मन-मन घर-घर में;
मेरे ही... घर भूले!
विकल विफल वंचित मृग-दृग-दल;
कम्पित उर ममताकुल, प्रतिपल;
शशि को कैसे छू ले!