आँखें हैं हैरान कि इन पर दुर्वह मन का भार है!
धारा है गम्भीर, लहर की डूबी-सी आवाज़ है;
डूब गया है तीर, इसी से कलरव का यह साज है!
क्यों ललकें अरमान गगन पर जब घन का अधिकार है!
कब छूटी थी नाव, कहाँ से, यह तो जाने कूल ही;
दीखी छाँव न ठाँव, भरी थी सूनी आँखों धूल ही;
मत पूछो, तूफान! कहाँ जाना, लगना किस पार है!
शशि मेरे! यह प्यार तुम्हारा मोम है कि पाषाण है?
मिलता है अंगार उसे, जो देता तुम पर जान है!
हे प्राणों के प्राण! तुम्हारी जीत नहीं, यह हार है!