आएंगे दिन उन कविताओं के
जिन्हें लिखा मैंने छोटी उम्र में
मैं कवि हूँ-
जब स्वयं को भी नहीं था मालूम यह ।
आएंगे दिन राकेट के अंगारों
और फव्वारों से छूटते छींटों-सी कविताओं के ।
धूप और आलस के नशे में झूमते
मंदिर में घुस आए शिशु-देवदूतों-सी
यौवन और मृत्यु की
जो पढ़ी नहीं गईं
आएंगे दिन उन कविताओं के ।
दूकानॊं की धूल में बिखरी हुई
ख़रीदारों की उपेक्षा की शिकार
महंगी शराब की तरह
मेरी कविताओं के भी दिन आएंगे ।
रचनाकाल : मई 1913
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह