आओ, दोस्त! / प्रताप सहगल

आखिर यह सड़क
कहां जाएगी?
किसी ने तो बनाई है
यह सड़क

यह खाली सड़क होती तो
बात दूसरी थी
यह एक राह है
आखिर यह राह
कहां जाएगी?
हरे और नीलेपन के बीच झूलती
यह राह
जहां कदमों की आहट नहीं
न घूमता कोई पहिया
हरे और नीलेपन के बीच झूलती
राह
जगाती है रहस्य या ऐश्वर्य
रहस्य और ऐश्वर्य के बीच झूलती
यह राह कहां ले जाएगी।
आओ, दोस्त!
पहला कदम हम ही रखें
और बनी-बनायी राह पर चलकर ही
अन्वेषक कहलाएं
आओ, दोस्त!
कदम बढ़ाएं।

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