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आज आया चाँद घर पे चाँदनी के आंगने / मृदुला झा

तृषित मन यह चाहता है तृप्त मन हो सामने।

मिट गए अवसाद सारे हम प्रफुल्लित हो गए
मिल गया मांगे बिना सब जायें अब क्या मांगने।

ज़िन्दगी की शाम में जब आप से मिलना हुआ,
प्यार की दस्तक सुनी औ आ गए हैं थामने।

झील में है डोलती अब चाँद की परछाइयाँ,
खिल गया मन का कमल जब आप आये सामने।

आपकी बोझिल निगाहें कह रहीं कुछ और ही,
बात ऐसी क्या हुई जो आ गए हैं जानने।