लम्बी-सी इक रात है मेरे पास
कि जिसमें नींद नहीं है
तुड़ी-मुड़ी इक बात है मेरे पास
कि जिसमें एक समूचा शब्द नहीं है
और एक बरसात है मेरे पास
कि जिसमें कहीं घटा घनघोर नहीं है
एक बिखरती सदी है मेरे पास
कि जिसमें समय नहीं इतिहास नहीं है
सूरज चन्दा थोड़े तारे भी हैं मेरे पास
मगर आकाश नहीं है
मैं तो आता आज तुम्हारे पास
तुम्हारी आँखों में अवकाश नहीं है