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आरति भक्तकल्पतरु हरि की / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग कान्हरा-ताल कहरवा)

आरति भक्तञ्कल्पतरु हरि की।
 दनुज-दर्पहर नर-केञ्सरि की॥
 रूप भयानक स्तभविदारी,
   असुर हिरण्यकशिपु-संहारी,
     भक्त-हेतु अद्भुत तनुधारी,
       सुरवन्दित प्रभु सर्वोपरि की॥
 मंगलमय सब मंगलकारी,
   शरणागत-वत्सल भयहारी,
     सौयरूप जन-हृदय-विहारी,
       अघतरु-मूलोत्पाटक करि की॥
 अखिल विश्व-शोधक मलहारी,
   जनप्रहलाद सुहृद सुखकारी,
     जयति जयति जय जय दैत्यारी।
       चिदानन्दमय तमहर-हरि की॥