आरती श्रीजानकीजी
आरति श्रीजनक-दुलारी की।
सीताजी रघुवर-प्यारी की॥-टेक॥
जगत-जननि जगकी विस्तारिणि,
नित्य सत्य साकेञ्त-बिहारिणि,
परम दयामयि दीनोद्धारिणि,
मैया भक्तञ्न-हितकारी की॥-सीताजी०॥
सती-शिरोमणि, पति-हितकारिणि,
पति-सेवा हित वन-वन-चारिणि,
पति-हित पति-वियोग-स्वीकारिणि,
त्याग-धर्म-मूरति-धारी की॥-सीताजी०॥
बिमल-कीर्ति सब लोकन छायी,
नाम लेत पावन मति आयी,
सुमिरत कटत कष्ट दुखदायी,
शरणागत-जन-भय-हारी की॥-सीताजी०॥