Last modified on 26 दिसम्बर 2011, at 21:54

इतने रंग न बाँधो / रमेश रंजक

इतने रंग न बाँधो !
चेहरे पर,
कि—लौटे खाली हाथ नज़र

ये उड़ती-उड़ती मुस्कानें
खट्टी-मीठी-सी
चिनगारी-सी नज़रें,
आँखें बुझी अँगीठी-सी

ये चिकना-चिकना रूखापन
             अमृत मिला ज़हर
                        चेहरे पर

इतने रंग न बाँधो !
सूरत लगे पत्रिका-सी
मेरा प्रश्न लगे उत्तर के
आगे चपरासी

काँटे जैसे लगें—
गुलाबी शब्दों के अक्षर
                   चेहरे पर
इतने रंग न बाँधो !