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इस उमस में टूटकर बरसात, जैसे तुम यहीं हो / ध्रुव गुप्त

इस उमस में टूटकर बरसात, जैसे तुम यहीं हो
इस क़दर उजली है मेरी रात जैसे तुम यहीं हो

आज तेरी याद ना आई तो कुछ टूटा है अन्दर
तेरी जानिब उठ गए हैं हाथ, जैसे तुम यहीं हो

आजकल तन्हाइयों से डर नहीं लगता है हमको
ख़ुद से कहते हैं हमारी बात, जैसे तुम यहीं हो

इस तरह रोते हैं ज्यों हाथों में दामन है तुम्हारा
इस तरह हंस देते हैं बेबात, जैसे तुम यहीं हो

मुद्दतें गुज़रीं कोई गुज़रा न दिल के रह्गुज़र से
आज गीले हैं बहुत जज़्बात, जैसे तुम यहीं हो

अब कोई शिकवा रहा ना है कोई उम्मीद बाकी
चल रहे हैं ज़िन्दगी के साथ, जैसे तुम यहीं हो