कभी
अपने नवजात पंखों को देखता हूँ
कभी आकाश को
उड़ते हुए
लेकिन ॠणी मैं फिर भी
ज़मीन का हूँ
जहाँ
तब भी था--जब पंखहीन था
तब भी रहूंगा जब पंख झर जाएँगे ।
(रचनाकाल : 5 जनवरी 1978)
कभी
अपने नवजात पंखों को देखता हूँ
कभी आकाश को
उड़ते हुए
लेकिन ॠणी मैं फिर भी
ज़मीन का हूँ
जहाँ
तब भी था--जब पंखहीन था
तब भी रहूंगा जब पंख झर जाएँगे ।
(रचनाकाल : 5 जनवरी 1978)