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उत्साह / प्रेमघन

निज सम्पादित 'आनन्द कादम्बिनी' मासिक पत्रिका से

घिरी घटा-सी फौज रूस मनहूम चढ़ी क्या आवै रामा।
हरि हरि खेलो कजरी मिलि गोरा औ काला रे हरी॥
साफ करो बन्दूकैं, टोटा टोओ, ढाल सुधारो रामा।
हरि हरि धरो सान तरवारन लै कर भाला रे हरी॥
ढीलढाल कपड़ा तजिकै अब पहिरौ फौजी मुरती रे रामा।
हरि हरि डीयर वालेन्टीअर! सजो रिसाला रे हरी॥
ढुनमुनिया सम सहज कबाइत करि जिय कसक मिटाओ रामा।
हरि हरि कजरी लौं गाओ बस करखा आला रे रही॥
मार! मार! हुँकार सोर सुर साँचे सब ललकारी रामा।
हरि हरि सत्रुन के सिर ऊपर दै सम-ताला रे हरी॥
बहुत दिनन पर ई दिन आवा देव ताव मोछन पैं रामा।
हरि हरि सुभट समर सावनवाँ बीतल जाला रे हरी॥
उठो बढ़ो धायो धरि मारो बेगि न बिलम लगाओ रामा।
हरि हरि पड़ा कठिन कट्टर से अब तौ पाला रे हरी॥
ऊठैं धूम के स्याम सघन घन गरजैं तोप अवाजैं रामा।
हरि हरि गिरैं बज्र सम गोला बम्ब निराला रे हरी॥
झरी बूँद-सी बरसाओ बस गोली बन्दूकन सों रामा।
हरि हरि चमकाओ चपलासी कर करवाला रे हरी॥
कहरैं मोर सरिस दादुर लौं बिलबिलायँ गिरि घायल रामा।
हरि हरि बिना मोल मनइन कै मूड़ बिचाला रे हरी॥
करो प्रेमघन भारत-भारत मैं मिलि भारतबासी रामा।
हरि हरि महरानी का होय बोल औ बाला रे हरी॥148॥