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ऊधौ! सो‌ई प्रीति अनन्य / हनुमानप्रसाद पोद्दार

ऊधौ ! सो‌ई प्रीति अनन्य !
सो‌ई जनम सफल, जेहि कबहूँ आवत नहिं सुधि अन्य॥
हमरे प्राननाथ मनमोहन, हम सौं उनकी प्रीति।
तुम का जानौं या रहस्य कौं, निपट अटपटी रीति॥
बिरह-बिकल यह देह दूबरी, दीखति गत-लावन्य।
सुधानंद-सागर हिय लहरत, बिकसित नित तारुन्य॥
कहाँ तिहारौ जोग-ग्यान-सीकर अति तुच्छ नगन्य।
कहाँ अतुल सौन्दर्य-सुधारस-बारिधि सुमधुर धन्य॥