एक अहम आसन पर है
एक वहीं घुटनों के बल
दोनों साहित्यिक शगल !
ग़ैरत को
बेच-बाचकर
ऊँचा उठ जाने का दम्भ
बरगद की
छाँह बैठकें
तड़ी मार कहना — हम थम्भ,
एक वहम ताल ठोंकता
एक वहीं हाथ रहा मल
दोनों साहित्यिक शगल !
हैरत तो
घोट-घाट पर
लोहा भी सोने के भाव
मसनद को
रीढ़ रो रही
आँखों में उम्र के उठाव,
एक सहम गीत धुन रहा
एक वहीं गोड़ता ग़ज़ल
दोनों साहित्यिक शगल !
17 जनवरी 1974