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ऐसे लिखता हूँ कविता / फूलचन्द गुप्ता

अम्मा ने अपनी पीठ को छेनी और हथौड़े से टाँका
और खुद चकिया बन गईं
जब भी खाई है मैंने
उनकी पीठ पर पिसे आटे की रोटी खाई है !
 मैंने उन्हें अपनी पीठ पर
हल्दी-धनिया पीसते हुए भी देखा है

दरअसल अम्मा निरन्तर ख़ुद को टाँकती रहती थीं
ज़रूरत के अनुसार वे
काँड़ी - मूसल , सिल - लोढ़ा या चूल्हा - चक्की बन जाती थीं ।

अगर यह अच्छी तमीज़ है तो
मुझमें कविता लिखने का शऊर
अम्मा से होकर ही आया है ।

अम्मा से विरासत में मिले छेनी-हथौड़े से
मैं रोज़ टाँकता हूँ अपनी पीठ
और तख़्ती बन जाता हूँ ।