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ओ शमा मुझे फूँक दे / शैलेन्द्र

ओ शमा मुझे फूंक दे
मैं न मैं रहूँ तू न तू रहे
यही इश्क़ का है दस्तूर
परवाने जा है अजब चलन
यहाँ जीते जी अपना मिलन
क़िस्मत को नहीं मंजूर

शाम से लेकर रोज़ सहर तक तेरे लिए मैं सारी रात जली
मैने तो हाय ये भी न जाना कब दिन डूबा कब रात ढली
फिर भी हैं मिलने से मजबूर
ओ शमा मुझे ...

पत्थर दिल हैं ये जगवाले जाने न कोई मेरे दिल की जलन \-२
जब से है जनमी प्यार की दुनिया तुझको है मेरी मुझे तेरी लगन
तुम बिन ये दुनिया है बेनूर
परवाने जा है ...

हाय री क़िस्मत अंधी क़िस्मत देख सकी ना तेरी\-मेरी ख़ुशी
हाय री उल्फ़त बेबस उल्फ़त रो के थकी जल\-जल के मरी
दिल जो मिले किसका था क़सू
ओ शमा मुझे ...
परवाने जा है ...