और है भी क्या / इंदुशेखर तत्पुरुष

यह मेरी व्याकुल आत्मा का संगीत है
सच-झूठ से परे
प्राणों से निचुड़ती भाषा।
इसे झूठ मानोगे तो भटक जाओगे
सच समझोगे तो बहक जाओगे
पर क्या करे कोई ?
बहकने और भटकने के सिवा
और है भी क्या
जीवन में!

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