और होना है अभी बेसर-ओ-सामाँ कितना
रंज उठायेगा मगर ऐ दिल-ए-नादां कितना
दर्द तो दिल की रफ़ाक़त के लिये होता है
बेसबब लोग किया करते हैं दरमाँ कितना
हाकिम-ए-शहर को कुछ इसकी ख़बर है कि नहीं
शहर की हद में दर आया है बयाबां कितना
जो भी हो होना है वो सब हो चुका अब देखते हैं
किसके हिस्से में है ज़ख़्मों का गुलिस्ताँ कितना
अब कोई दश्त में आये तो यही सोच के आये
वहशत-ए-दिल से ज़ियादा है ग़रीबाँ कितना