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कजली / 15 / प्रेमघन

गुय्याँ देखो री कन्हैया रोकै मोरी डगरी॥टे।॥
ओढ़े कारी कमरी, सिर पर टेढ़ी पगरी;
गारी बंसी बीच बजावै देखौ ऐसो रगरी॥
भाजै मारि-मारि कँकरी, रोजै फोरै गगरी;
यह अन्धेर मचाये घूमै सारी गोकुल की नगरी॥
लखिके सुन्दर गूजरी, तजिकै सखियाँ सगरी;
गर लगि मेरे सब रस लूटै दैया! कारो ठगरी॥
कीजै जतन कवन अबरी, लखि-लखि हंसै सबै जगरी;
प्रेमी बनो प्रेमघन घूमै मेरे संग-संग लगरी॥31॥