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कजली / 24 / प्रेमघन

दूसरा प्रकार

मनोहर मिश्रित भाषा
अर्थात् निखरी हिन्दी वा तड़ी बोली।

सामान्य लय
"कौने रंग मुंगवा कौन रंग मोतिया" की चाल

मैं बारी कहाँ जाऊँ अकेली, डगर भुलानी रे सांवलिया।
कुंज गली में आय अचानक, बहुत डेरानी रे सांव।॥
डगर बता दे गरवाँ लगा ले, निज मनमानी रे सांव।॥
चेरी हूँ जी से मैं तेरी, रूप दिवानी रे साँवलिया॥
सुन जा हाय! तनिक तो मेरी, प्रेम कहानी रे सांव।॥
ये अंखियाँ तेरी अलकन में, हैं उलझानी रे साँवलिया।
कहा बिचारै आह उतै तू, भौंहन तानी रे साँवलिया।
पिया प्रेमघन आओ बेगहिं, दिलबर जानी रे सांव।॥43॥