झूले की कजली
कालिन्दी के कूल कलित कुंजनि कदंब मैं आली रामा। 
हरि हरि झूलनि की झूलनि क्या प्यारी-प्यारी रे हरी॥
चमकि रही चंचला चपल, चहुँ ओर गगन छबि छाई रामा। 
हरि हरि सघन घटा घन घेरी कारी-कारी रे हरी॥
प्यारी झूलैं पिया झूलावैं गावैं सुख सरसावैं रामा। 
हरि हरि संग वारी सब सखियाँ बारी-बारी रे हरी॥
लचनि लंक की संक लली लहि बंक भौंह करि भाखैं रामा। 
हरि हरि "बस कर झूलन सों मैं हारी हारी" रे हरी॥
बरसत रस मिलि जुगल प्रेमघन हरसत हिय अनुरागैं रामा। 
हरि हरि टरै न छबि अँखियनि तैं टारी रे हरी॥80॥