यों स्वीकार तो मैंने तुमको
हर हाल में किया है
हे मूर्तिमान अमूर्त!
पर मुझे चाहिए तुम्हारा आकार
तुम पर अधिकार जताने और
तुमसे प्यारे करने के लिए।
यह मेरा बचपना ही सही
पर भला
देखे-हुए बिना भी
संभव है क्या भी प्यार?
यों स्वीकार तो मैंने तुमको
हर हाल में किया है
हे मूर्तिमान अमूर्त!
पर मुझे चाहिए तुम्हारा आकार
तुम पर अधिकार जताने और
तुमसे प्यारे करने के लिए।
यह मेरा बचपना ही सही
पर भला
देखे-हुए बिना भी
संभव है क्या भी प्यार?