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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 22

 
(लंकादहन -5)

( छंद 21 से 25)


‘पावकु, पवनु, पानी, भानु, हिमवानु, जमु,
कालु, लोकपाल मेरे डर डावाँडोल हैं।

 साहेबु महेसु सदा संकित रमेसु मोहिं,
 महातप साहस बिरंचि लान्हें मोल हैं। ।

 ‘तुलसी’ तिलोक आजु दूजो न बिराजै राजु,
 बाजे-बाजे राजनिके बेटा-बेटी ओल हैं।

को है ईस नामको, जो बाम होत मोहूसो को,
 मालवाल! श्रावरेके बावरे-से बोल हैं।21।’
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भूमि भूमिपाल,ब्यालपालक पताल, नाक-,
 पाल , लोकपाल जेते, सुभट-समाजु है।

कहै मालवान, जातुधानपति! रावरे को
मनहूँ अकाजु आनै, ऐसो कौन आजु है।।

रामकोहु पावकु, समीरू सीय-स्वासु, कीसु,
ईस-बामता बिलोकु, बानरको ब्याजु है।

जारत पचारि फेरि-फेरि सो निसंक लंक,
जहाँ बाँको बीरू तोसो सूर-सिरताजु है।22।