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कहाँ वयस सुकुमार वत्स / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग पूर्बा-ताल कहरवा)
कहाँ वयस सुकुमारवत्स! तव, कहाँ अहो, यह मृदुल शरीर !
 और कहाँ उन्मा दैत्यकृञ्त यह दारुण यातना गँभीर॥
 देखी अद्भुत बात-पितासे पीडित पुत्र बिना अवलब।
 क्षमा करो हे वत्स ! मुझे आनेमें यदि हो गया विलब॥