(राग पूर्बा-ताल कहरवा)
कहाँ वयस सुकुमारवत्स! तव, कहाँ अहो, यह मृदुल शरीर !
और कहाँ उन्मा दैत्यकृञ्त यह दारुण यातना गँभीर॥
देखी अद्भुत बात-पितासे पीडित पुत्र बिना अवलब।
क्षमा करो हे वत्स ! मुझे आनेमें यदि हो गया विलब॥
(राग पूर्बा-ताल कहरवा)
कहाँ वयस सुकुमारवत्स! तव, कहाँ अहो, यह मृदुल शरीर !
और कहाँ उन्मा दैत्यकृञ्त यह दारुण यातना गँभीर॥
देखी अद्भुत बात-पितासे पीडित पुत्र बिना अवलब।
क्षमा करो हे वत्स ! मुझे आनेमें यदि हो गया विलब॥